MVA को हराने BJP की कुटनीति का खुलासा | BJP ने संदीप नाईक को NCP में क्यों भेजा
BJP's diplomacy to defeat MVA exposed | Why did BJP send Sandeep Naik into NCP
BJP ने संदीप नाईक को NCP में क्यों भेजा…खुलासा करती रिपोर्ट
नवी मुंबई में राजनीतिक भूकंप आने वाला है. जी हां, दलबदल का यह भूकंप कई दलों की टेंशन बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसा ही भूचाल आया था, जब बीजेपी के जिलाध्यक्ष संदीप नाईक अचानक भाजपा छोड़कर एनसीपी शरद पवार खेमे में शामिल हो गए थे. इससे पहले अटकलें खूब चलीं लेकिन जिस तरह उन्होंने एनसीपी में प्रवेश किया वह कईयों के लिए अप्रत्याशित रहा. उस कार्यक्रम में बीजेपी के तमाम नगरसेवक और पदाधिकारी भी मौजूद थे, उन्हें तक नहीं पता चला कि आखिर हो क्या रहा है. मीडिया को भी नहीं अंदाजा था कि संदीप नाईक इस तरह एनसीपी तुतारी का दामन थाम लेंगे.
25 दिसंबर को तय हुई है घरवापसी की तिथि अब एक बार फिर अटकलें चल रही हैं कि संदीप नाईक एनसीपी छोड़कर बीजेपी में घर वापसी करने वाले हैं. 25 दिसंबर की तारीख भी तय मानी जा रही है जब 29 नगरसेवकों के साथ संदीप नाईक भाजपा का कमल थामेंगे. बीजेपी में दल बल के साथ घरवापसी करेंगे. सोशल मीडिया पर इसे लेकर खूब चर्चाएं चल रही है. कई दावे किए जा रहे हैं. कई तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर जो नेता ऐन चुनाव बीजेपी कार्यकर्ताओं को बीच मझधार छोड़ गया उसे पार्टी में दोबारा लेने की जरूरत क्या है..आखिर इन सवालों का जवाब क्या है.. आखिर इस दलबदल का सच क्या है.. इस पर टीवी वन इंडिया का खुलासा समझना जरूरी है.
एक सवाल आप सबके सामने रखता हूं कि ताकि आप इस पर मंथन कर सकें. सवाल ये है कि क्या वाकई संदीप नाईक बीजेपी में वापसी करने वाले हैं. क्या वे अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ भाजपा का झंडा फिर थामने वाले हैं..अगर ऐसा है तो फिर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर उन्होंने भाजपा को छोड़ा ही क्यों था. खिलाफत में जाकर चुनाव लड़ने की जरूरत क्या थी. तो आप सोचते होंगे कि सिर्फ विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला इसलिए संदीप नाईक ने बीजेपी छोड़ दिया जहां शरद पवार की एनसीपी से टिकट मिला वहां से चुनाव लड़े. आप सोचते होंगे मंदाताई म्हात्रे को हराने के लिए ही संदीप नाईक ने बीजेपी से बगावत की. लेकिन यह पूरा सच नहीं है. राजनीति में कौड़ियां दूर से फेकी जाती हैं. शतरंज की विसात सामने होती है लेकिन चाल कोई चलता है..जैसा कि विधानसभा चुनाव में देखने को मिला..संदीप नाईक ने बीजेपी क्यों छोड़ी उस पर सबकी अलग अलग राय हो सकती है ..जरा सोचिए जिस नेता के हाथ में पार्टी की कमान हो..जिसके पास पार्टी की पॉवर और सबसे अधिक अपॉच्यूनिटी हो वह उस पार्टी को छोड़कर हासिए पर जा चुकी एनसीपी से क्यों जुड़ेगा और तो और हार की बदनामी क्यों मोल लेगा.
संदीप नाईक एनसीपी में गए नहीं भेजा गया
चौकिए मत..क्योंकि आज इस सवाल से पर्दा उठने वाला है. आज हम आपको बताने वाले हैं कि वह सच जो आज तक आपके सामने नहीं आया है… जी हां हमने इस पूरे मामले पर खूब जांच पड़ताल की है. हालात और उसके अनुसार लिए गए संदीप नाईक और बीजेपी के फैसलों पर नजर डाली, माईक्रो अब्जर्वेशन किया जिसके बाद यह खुलासा हाथ लगा है. हमारे पॉलिटिकल विश्लेषण के मुताबिक संदीप नाईक ने खुद बीजेपी नहीं छोड़ी बल्कि भाजपा ने ही संदीप नाईक को विरोधी खेमे में जाने का सुझाव दिया….सूत्रों की मानें तो पार्टी आलाकमान के सुझाव पर ही संदीप नाईक ने बीजेपी का जिलाध्यक्ष पद त्याग कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में जाने का फैसला किया और महज एक महीने के भीतर तुतारी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा. सोचने वाली बात ये है कि क्या इसके पीछे की कोई बड़ी रणनीति थी. क्या यह बीजेपी आलाकमान की कोई बड़ी चाल थी, ताकि महाविकास आघाड़ी को शिकस्त दी जा सके. क्या इसी के लिए संदीप नाईक को मोहरा बनाया गया. तो क्या संदीप नाईक की बगावत के कारण ही बेलापुर में बीजेपी को जीत मिली. क्या संदीप नाईक के इसी त्याग के कारण ही भाजपा ने उन्हें दोबारा पार्टी में लेने का फैसला किया है..
इसके जवाब से पहले याद कर लेते हैं 2019 का विधानसभा चुनाव जब बीजेपी ने ऐरोली और बेलापुर इन सीटों में से सिर्फ एक ऐरोली सीट से संदीप नाईक को टिकट दिया और गणेश नाईक का टिकट काट दिया. तब संदीप नाईक ने पुत्र धर्म का निर्वाह करते हुए अपने पिता के लिए ऐरोली सीट छोड़ दी. संदीप नाईक के इस त्याग की भी खूब चर्चा हुई…बीजेपी के आंतरिक सूत्र बताते हैं कि 2024 में भी संदीप नाईक ने बीजेपी आलाकमान के कहने पर ऐसा ही त्याग किया और पार्टी से बगावत करते हुए विरोधी दल के टिकट से चुनाव लड़ा. दोनों ही हालात में बीजेपी का फायदा हुआ…तो सवाल ये है आखिर ऐसा क्यों हुआ..संदीप नाईक की बगावत और बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने की असली वजह आखिर क्या है…
महाविकास आघाड़ी को हराने मैदान में उतारे गए संदीप नाईक
शरद पवार को मानने वाले राष्ट्रवादी और माथाड़ी कामगारों का बड़ा वर्ग विजय नाहटा को समर्थन देने के लिए तैयार हो गया..यह महायुति के लिए खासकर बीजेपी की चिंता बढ़ा रहा था. पॉलिटिकल अब्जर्वर्स का दावा है कि बीजेपी ने मंदा म्हात्रे और पार्टी की हार को बचाने के लिए संदीप नाईक को एनसीपी शरद पवार खेमे में भेजा.चूंकि संदीप नाईक पहले एनसीपी से ही भाजपा में आए थे इसलिए उनके इस कदम को एनसीपी में घर वापसी माना गया लेकिन यह एक रणनीति थी..संदीप नाईक ने बिना जाहिर किए दिलो जान से चुनाव भी लड़ा और अपनी ताकत भी दिखाई…लेकिन यह सब कुछ बीजेपी के लिए था…. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि संदीप नाईक एनसीपी महाविकास आघाड़ी से चुनाव नहीं लड़ते तो विजय नाहटा की जीत पक्की थी.बेलापुर सीट महाविकास आघाड़ी के हाथ में चली जाती. इससे 2 बार की विधायक रहीं मंदाताई म्हात्रे को करारी हार का सामना करना पड़ता.. बीजेपी की जितनी रैलियां हुई उनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, देवेंद्र फडणवीस समेत कई दिग्गज नेता आए लेकिन किसी ने भी संदीप नाईक के खिलाफ कुछ नहीं बोला…वे बेलापुर में बीजेपी और कैंडिडेट मंदा म्हात्रे की ताकत देखना चाहते थे. वे संदीप नाईक की भी ताकत आजमाना चाहते थे…इसका परिणाम भी देखने को मिला..महाविकास आघाड़ी को रोकने जो संदीप नाईक मैदान में उतरे वो जीत के इतने करीब पहुंच गए कि अंतर सिर्फ 377 पर आकर सिमट गया..बीजेपी को पता चल गया कि यदि यह रणनीति नहीं चली जाती तो विजय नाहटा को एकमुस्त वोट पड़ते और परिणाम अलग होते..विजय नाहटा और डॉ.मंगेश आमले ने भी वोटों का विभाजन किया जो बीजेपी को विजय दिलाने में मददगार रहा.. भाजपा की इस कूटनीति ने एनसीपी शरद पवार गुट को भी दो फाड़ कर दिया. डॉ.मंगेश आमले ने टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर दी. विजय नाहटा का एनसीपी से काटने पर एनसीपी मुखिया शरद पवार और सुप्रिया सुले की नीयत पर दाग लग गया. पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में संदेश गया कि राष्ट्रवादी कांग्रेस में किसी का भला नहीं होने वाला है. असंतोष और बगावत का बोलबाला हुआ…यानी एक तीर से कई शिकार…
जाहिर है संदीप नाईक के एक फैसले ने बीजेपी को न सिर्फ जीत दिलाई बल्कि बेलापुर में पार्टी और विधायक की छवि को भी कायम रखने में मददगार रहा. कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि संदीप नाईक को अपना विरोधी मानने वाले कार्यकर्ताओं को उनका आभार मानना चाहिए…जिनकी वजह से मंदाताई म्हात्रे की जीत मिली…और महाविकास आघाड़ी को हार का मुंह देखना पड़ा..
खैर वो कल की बात थी. हम बात कर रहे हैं आज की और आने वाले कल की…जो संदीप नाईक के बीजेपी में घर वापसी की संभावनाओं से पैदा हुई है.. बीजेपी आखिर संदीप नाईक को क्यों चाहती है..क्या भाजपा के लिए संदीप नाईक इतने जरूरी हैं . विरोध में लड़ने के बावजूद पार्टी उन्हें क्यों अपनाना चाहती है..इसके जवाब में कुछ तर्क सामने आ रहे हैं. मसलन महज 377 वोट से हारना कोई हार नहीं बल्कि जीत है..संदीप नाईक के साथ 29 नगरसेवक और लाखों कार्यकर्ता हैं. और सबसे बड़ी बात कि आने वाले चंद महीनों में महानगर पालिका का चुनाव है…बीजेपी जानती है कि नवी मुंबई मनपा पर कमल का झंडा लहराना है तो नाईक परिवार की ताकत चाहिए..आज गणेश नाईक ऐरोली से विधायक हैं, पार्टी ने उन्हें इस बार कैबिनेट मंत्री बनाया है, महानगर पालिका में सत्ता के लिए बीजेपी को मजबूत समीकरण चाहिए लेकिन संदीप नाईक के साथ आए बिना यह संभव नहीं दिख रहा है..अकेले मंदा म्हात्रे के सहारे भी यह नामुमकिन है..महायुति के घटक दल शिवसेना और एकनाथ शिंदे अंदरखाने बीजेपी को ठाणे जिले में कमजोर करने की फिराक में लगे हैं. इसे सिर्फ गणेश नाईक रोक सकते हैं. इसलिए उन्हें पावर देना बीजेपी की मजबूरी है..संदीप नाईक के भाजपा में आने से यह पावर और बढ़ेगी..
बीजेपी को नवी मुंबई में फ्यूचर लीडर चाहिए, बस…
बीजेपी अगर संदीप नाईक का वेलकम कर रही है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.. क्यों कि संदीप नाईक के कारण बीजेपी विधान सभा चुनाव में सफल हो सकी है . अब महानगर पालिका की बारी है…जिसमें संदीप नाईक बीजेपी की जरूरत हैं…उनका समर्थन जीत की जरूरत है…इसलिए बीजेपी संदीप नाईक को फिर पार्टी में लेना चाहती है…कुछ कार्यकर्ता और पदाधिकारी चिंतित हो गए हैं जब बीजेपी छोड़कर गए पदाधिकारी फिर आएंगे तो उनका क्या होगा…महानगर पालिका चुनाव में उनकी अहमियत क्या होगी…लेकिन यह चिंता पार्टी की नहीं है क्योंकि पार्टी कोई भी हो..उसे मजबूत नेता चाहिए होता है जिसके साथ जनाधार हो..संदीप नाईक इस मामले में बीजेपी के लिए हुकुम का इक्का हैं. पार्टी उन्हें वापस लेना चाहती है तो उसमें हर्ज क्या है…..मुद्दे की बात में आज बस इतना ही ..