GadhiRiver : गाढ़ी नदी की सफाई पर लाखों का खर्च फिर भी रिजल्ट जीरो
Gadhi river cleaning issue |Panvel gadhi river bad condition
एलआर यादव की स्पेशल रिपोर्ट / पनवेल : 2005 में हुए जल प्लावन के बाद हर साल गाढ़ी नदी बाढ़ के खतरे की घंटी बजाती है। 2019 में पहली बार इसका पूरा कीचड़ निकाला गया था, उसके बाद सिर्फ मलबा निकालने की कोरम पूर्ति हो रही है। पनवेल मनपा का कहना है कि पर्याप्त सफाई की जा रही है और बाढ़ का खतरा नहीं है। लेकिन सच ये है कि हर मानसून में नदी के उफान से कई इलाके पानी में डूबते हैं। इनमें किनारे पर बसे साईनगर, बावन्न बंगला, पटेल मोहल्ला खाड़ी, वीट सेंटर, कोलीवाड़ा इलाका खास है जहां 5 से 7 फुट पानी का जमाव होता है
मछुआरे बेहाल, सेहत का भी खतरा
पनवेल की गाढ़ी नदी, प्रशासन की उपेक्षा, सफाई का अभाव और प्रदूषण के चलते गंदी पहचान बन रही है। कभी इस नदी के नाम से पुरातन पनवेल की पहचान होती थी लेकिन बढ़ते शहरीकरण और कंपनी-कारखानों से बेरोक -टोक छोड़ा जा रहा प्रदूषित पानी गाढ़ी के अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। सबसे अधिक नुकसान मछुआरों का हो रहा है जिनकी जीविका गाढ़ी नदी की मछलियों पर निर्भर रहती है। प्रदूषण का कहर, नदी में मिलने वाले झींगा, केकड़े, मांजरी, कतला, रोहू, मृगल केकडे़ और कछुआ सबको खत्म कर रहा है।
जहरीला पानी बढ़ा रहा बीमारियां-ज्योति नाडकर्णी
गाढ़ी नदी के पुनर्जीवन के लिए काम कर चुकी पर्यावरण प्रेमी ज्योति नाडकर्णी बताती हैं, कि यहां तलोजा, पनवेल और रसायनी की केमिकल कंपनियों से छोड़ा जा रहा प्रदूषित पानी गाढ़ी नदी को बर्बाद कर रहा है। इससे ग्राउंड वॉटर जहरीला बन रहा है। नदियों के पानी खाड़ी में जाकर मछलियों को बीमारी का जरिया बना रहा है।यह सब रुकना चाहिए।पनवेल मनपा को इस पर ज्यादा गंभीरता दिखानी चाहिए।
-ज्योति नाडकर्णी-पर्यावरण प्रेमी
3 करोड़ से ज्यादा का खर्च, हालत जस की तस
पनवेल मनपा के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 लेकर 2022 तक 3 करोड़ से अधिक इसकी सफाई और किनारों के सुधार पर खर्च हुआ है। मानसून आते ही यह खानापूर्ति शुरू हो जाती है। हर साल जनता की गाढ़ी कमाई गाढ़ी नदी की सफाई पर स्वाहा हो जाती है। लेकिन हालत नहीं बदलती। प्रशासन फाइलों में काम निपटाता है और पर्यावरण प्रेमी इसको बचाने के लिए प्रयत्न करते नजर आते हैं। बीते वर्ष स्थानीय विधायक प्रशांत ठाकुर ने कार्यकर्ताओं को लेकर गाढ़ी नदी की सफाई की। कई संस्थाएं भी इसकी जैव विविधता और पुनर्जीवन के लिए काम कर रही हैं।